ऋग्वेद :-
ऋग्वेद की परिभाषा ( ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान ) ऋग्वेद सबसे पहला वेद है जो पद्यात्मक है। सनातन धर्म का पहला आरम्भिक स्रोत ऋग्वेद है। यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद यह तीनो की रचना ऋग्वेद से ही हुई है। ऋग्वेद छंदोबद्ध वेद हे, यजुर्वेद गद्यमय वेद हे और सामवेद गीतमय ( गीत-संगीत ) है। ऋग्वेद की रचना उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 1500 से 1000 ई.पू. का माना जाता है। ऋग्वेद के मन्त्र और भजन की रचना कोय एक ऋषि द्वारा नहीं की गई है। परंतु जैसे अलग काल में अलग ऋषिओ द्वारा की गई है। ऋग्वेद में आर्यो की राजनीती की परंपरा और इतिहास की जानकारी दी गई है।
ऋग्वेद का परिचय :-
सम्पूर्ण ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त है, और सूक्त में 11 हजार मंत्र है। प्रथम मंडल और दशवाँ मंडल बाकि सब मंडलो से बड़े हैं। इस में सूक्तों की संख्या भी 191 है। ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग दूसरे मंडल से लेकर सातवे मंडल तक का है। ऋग्वेद के आठवे मंडल के प्रारंभ में होनेवाले 50 सूक्त प्रथम मंडल से समान होने का भाव रखते है।
ऋग्वेद के दसवेँ मंडल में औषधिओ का उल्लेख मिलता है। इसमें 125 औषधि का वर्णन किया गया है, वह 107 जगह पर प्राप्त होने का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद में सोम औषधि का वर्णन विशेष जगह पर मिल जाता है। अनेक ऋषिओ द्वारा रचित ऋग्वेद के छंदो में अनुमानित 400 स्तुति मिल जाती है। यह स्तुति सूर्यदेव, इन्द्रदेव, अग्निदेव, वरुणदेव, विश्वदेव, रुद्रदेव,, सविता आदि देवी-देवताओं की स्तुति का वर्णन मिलता है। यह स्तुति देवी-देवताओ को समर्पित हैं।
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